कमाल का है पैरहन दुनिया की ज़ात का,
उधड़े कि या साबूत हो - उरियाँ हीं है रखे...
रिश्तों के जो रेशे हैं रिसते हैं हर घड़ी...
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हत्थे से हीं उखड़ गई वो जड़ ये जान के
कि फूल-पत्तियों ने खुद को उससे लाज़िमी कहा...
तुम गए तो साथ मेरी मिट्टी भी तो ले गए..
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पत्थर या नमक दे जाती है,
हर लहर जो मुझ तक आती है...
मैं रेत के साहिल जैसा हूँ...
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राह में तेरी रखी होंगीं ये आँखें उम्र भर,
जब उतर आओ अनाओं से बता देना इन्हें...
सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...
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मुझे एक टीस ने ज़िंदा रखा है,
तुम्हें एक टीस से मरना पड़ा था...
मिटा दूँ टीस तो मर जाऊँ मैं भी...
- Vishwa Deepak Lyricist
8 comments:
रिश्ते के रेशों का रिसना ,मिट्टी का भी साथ ले जाना ,साहिल सा होना ,इंतज़ार की इंतिहां ,बिना तीस के ज़िंदा रहना भी नामुमकिन .... सभी त्रिवेणी गजब की लिखी हैं ॥
बेहद शुक्रिया संगीता जी... उत्साहवर्द्धन बनाए रखिएगा :)
सभी शानदार
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .
राह में तेरी रखी होंगीं ये आँखें उम्र भर,
जब उतर आओ अनाओं से बता देना इन्हें...
सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...
गज़ब...क्या बात है..सभी त्रिवेनियाँ भाईं.
लाज़वाब...
आप सभी का शुक्रिया इस प्रोत्साहन के लिए...
सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...
VD bhai aap kamaal kar dete ho yaar! sabhi triveni oomda...ye waali mere dil ko sabse jyada chhui!
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