Wednesday, September 19, 2012

एक सवाल बनारस से


बनारस की सीढियों को
छूकर जगता सूरज
अंजुरी में पानी ले
करता है - आचमन या वज़ू,
टेरता है
"हे भगवान"
या फिर "या अल्लाह"?

क्या पता!

बनारस की सीढियों पर
दिन भर ऊँघता सूरज
अघाता है चखकर
"केसरिया तर" मलइयो
या हरा पान
या फिर "केसर-पिस्ता" लौंगलता?

क्या पता!

बनारस की सीढियों से
लुढककर गिरते सूरज को
"मिर्ज़ापुर" संभालता है
या "गाज़ीपुर"
या फिर
हो जाता है सूरज भस्म वहीं
"मणिकर्णिका" घाट पर?

क्या पता!

बनारस की सीढियाँ जानती हैं
बस "बाबा लाल बैरागी" को
या "दारा शिकोह" को भी
जो सीखता था उससे उपनिषद
और
पढता था नमाज़.....पाँच दफ़ा?

क्या पता!

क्या मालूम -
बनारस की सीढियाँ तकती हैं किधर?
पूरब या मगरिब?

कौन जाने... क्या पता!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

3 comments:

Prachi said...

Mahadev ke Kashi ka jadoo...

ANULATA RAJ NAIR said...

सच्ची कौन जाने......
हां सीढ़ियों की सोच इंसानों से जुदा होगी ये यकीन है.....

बहुत सुन्दर रचना...
अनु

विश्व दीपक said...

आप दोनों का बहुत-बहुत धन्यवाद..