एक झिल्ली है पतली
जिसकी एक ओर है तुम्हारा होना,
दूसरी ओर - न होना
और जिनमें भरे हैं द्रव
प्यार और नफरत के...
तुम बदलती रहती हो
घनत्व इन द्रवों के..
बदलती रहती हैं परिस्थितियाँ..
बदलता रहता हूँ मैं भी
और होता रहता हूँ
इस-उस पार
"ऑस्मोसिस" या "रिवर्स-ऑस्मोसिस" की बदौलत...
इस तरह
रिश्ते की वह पतली झिल्ली
झेलती रहती है
"सोल्वेंट", "सोल्युट" का खेल
और मज़े लेता रहता है "मनो""विज्ञान".....
- Vishwa Deepak Lyricist
5 comments:
वैज्ञानिक सिद्धांत को मनोभावों के रूप में प्रकट करना ...वाकई अच्छा प्रयोग
बहुत-बहुत शुक्रिया वंदना जी..
मैं भी सहमत हूँ :-)...वह क्या बात है ...
waah kya baat hai...ye naya andaaz hai aapki kavita ka!
जी, सोचा कि विज्ञान को क्यों अछूता छोड़ा जाए ,इसलिए आगे भी अलग-अलग तरह का विज्ञान मेरी कविताओं में दिखता रहेगा :)
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