ना चमड़ी है जो खून जने,
ना दमड़ी हीं जो सिंदुर दे..
ले भटकोइयां और मांग सजा...
*भटकोइयां = खर-पतवार श्रेणी का एक पौधा जिसपे "मटर-दाने" की तरह के फूल उगते है और जिन्हें फोड़ने पर लाल रंग निकलता है
____________________
वो काटता है जब माटी को,
माटी-सा कटता जाता है...
सोना सोता है संसद में..
____________________
गदगद हैं पूँछ उगाकर सब,
जो कल तक मुझ-से इंसां थे..
मैं जम्हूरियत का बागी हूँ...
____________________
तालीम जहां की ऐसी है,
हर शख्स करैला नीम-चढा..
चुप्पी भी ज़हर उगलती है..
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
तालीम जहां की ऐसी है,
हर शख्स करैला नीम-चढा..
चुप्पी भी ज़हर उगलती है..
बढ़िया रचनाएं
जी शुक्रिया..
Post a Comment