पत्थर या नमक दे जाती है,
हर लहर जो मुझ तक आती है...
मैं रेत के साहिल जैसा हूँ...
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वह उड़ते-उड़ते बैठ गया मेरी आँखों में,
तब से हीं मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं...
गिद्ध घरों पे बैठे तो मौत का आलम होता है..
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इश्क़ की बेरूखियों को रखता आया पन्नों पे,
सर पटक के आज हर्फ़ों ने किया है आत्मदाह..
मैं जलूँ या तुझको सीने से निकालूँ, तू हीं कह..
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सुबह से तुम्हारी यादों की हो रही हैं उल्टियाँ,
एक "हिचकी" की दवा दे जाओ कि चैन आए..
याद कर-करके मुझे मार हीं दो तो बेहतर हो..
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तुम सुधर गए हमें बिगाड़ते-बिगाड़ते,
हम उधड़ गए तुम्हें संवारते-संवारते..
प्यार तो था हीं नहीं, बस नीयतों की जंग थी...
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
bahut khoob ..magar yad ki hichkiyon se koi marta nahi ..ulte jindagi sanvar jati ho shayad...
जी, मरने की सोच तो मेरी है.. अब वो याद करें तो न पता चलेगा कि मौत सामने है या ज़िंदगी.... शायद मैं गलत साबित हो जाऊँ और जी जाऊँ :)
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