Saturday, September 15, 2012

हुस्न-ओ-इश्क़


तेरी आँखों में डूबा जब हीं,
तब से न उभर मैं पाया हूँ..

तेरी आँखें "ब्लैक होल" हैं री...

_________________


बदरंग-सी थी हर शय अब तक,
तेरे कदम पड़े..रंग फैल गया..

तू हुस्न की "हिग्स बोसॉन" है क्या?

________________


हुनर मेरा लापता है तब से,
जब से हुआ मैं हुनरमंद हूँ...

शायर ने अब इश्क़ किया है....

________________


तेरा नाम आधा लिखकर तुझे सोचता हूँ मैं,
फिर सोचता हूँ कि ये पूरा नहीं मेरे बिना...

हर्फ़ थोड़े तुम भरो, हर्फ़ थोड़े मैं भरूँ....

_________________


उसे अच्छा दिखने का शौक़ है
और मुझे... उसे देखने का..

ज़ौक़ दोनों का एक हीं तो है.

- Vishwa Deepak Lyricist

No comments: