Monday, September 03, 2012

अजब मठाधीश है तेरा मानुष


उन्हें सुनाने से कुछ नहीं हासिल,
मगर सुना दूँ कि चोट पैदा हो..

मुझे पता है कि वो हैं इकरंगी,
समझ चढा लें कि खोट पैदा हो..

कहाँ "महा’"राज" उत्तर या दक्खिन,
अगर नफ़ा हो ना नोट पैदा हो..

अजब मठाधीश है तेरा "मानुष",
तुझे भुला दे जब वोट पैदा हो..

उसे भगाओगे किस तरह "तन्हा",
हवा-ज़मीं में जो लोट पैदा हो..

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

वाणी गीत said...

तुझे भूला दे जब नोट पैदा हो ...
होता तो यही है आजकल !

विश्व दीपक said...

जी यह सच्चाई तो अपनी दुर्गति का कारण है :(