मुझे मत दिखाओ सिगरेट का बुझा हुआ ठूंठ,
मैं खुद हीं जलके बुझता हूँ फिल्टर-सा हर समय...
सौ लफ़्ज़ गुजरते हैं.. जलती है शायरी तब..
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मानी छांट के लफ़्ज़ वो टांकता है पन्नों पे,
संवारके हर हर्फ़ फिर वह शायरी सजाता है..
चार "आह-वाह" लोग अर्थी पे डाल आते हैं...
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मैंने लिखते-लिखते चार-पाँच उम्रें तोड़ डालीं,
यह वक्त इसी हद तक मुझपे मेहरबान था...
कुछ और गर जो होता तो जीता मैं भी आज
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सोच हलक में अटकी है,
शब्द चुभे हैं सीने में..
दर्द की हिचकी आती है..
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क्या सुनेगा वो मेरी फरियाद को,
जो खुद हीं फरियादों से है लापता...
क्या ख़ुदा? कैसा ख़ुदा? किसका खु़दा?
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
har ek triveni behtareen!!!
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