बदचलन मेरी आदतें
गर आपकी
अर्दली हो जाएँ तो
मेरे माथे पे चढाया
बेहयाई का ये परचम
कुछ झुकेगा
या नहीं?
बोलिए तो...
आपकी गर मानें तो
मेरी इन हथेलियों के
आड़े-टेढे रास्तों पे
जो उतरते हीं नहीं है
आफताबी सात घोड़े
वो मेरी बदरंग तबियत
की मेहर है..
इसलिए गर
आपकी तदबीर से
माँगकर कुछ कोलतार
डाल दूँ इन
सरफिरी पगडंडियों पे
और कर दूँ
पक्की सड़कें मैं इन्हें
तो मेरी
माटी भरी तकदीर का
हो पड़ेगा काया-कल्प
या नहीं?
बोलिए तो...
बदसलूकी करते मेरे
अल्फ़ाज़ ये
आपके हम्माम में
धुलने लगें हर रोज़ तो
"बेरूखी" और "बेबसी" के हर्फ़ सब
बह जाएँगें..
यूँ हुआ तो
आपके खलिहान के
किसी छोर पे
इक लेखनी के वास्ते
एक-आध हीं सरकंडे मेरे
बोलिए
उग पाएँगे
या नहीं?
बोलिए तो...
- Vishwa Deepak Lyricist
No comments:
Post a Comment