छल और मर्यादा के बीच
कृष्ण का वह पाँव
खड़ा है
जो हुआ था छलनी
जरा के बाणों से..
(वही पाँव
जिसने एक ठोकर में
ठेल दिया था
बलि को पाताल में
तो दूजी में
अहिल्या को
दिया था
जीवन-दान..)
बाण तब भी चले थे
जब कृष्ण ने छुपा लिया था
बरबरीक से एक पत्ता..
तब क्यों न बिंधा वह पाँव?
(तब तो कटा था
एक निरपराध का सर..)
कृष्ण ने तो
एक पग में हीं
नाप लिया था
सारा का सारा कुरूक्षेत्र..
वह पाँव
तभी गिरा
जब रूक जाना था
थक कर उसे..
छलनी होना तो
एक छलावा था मात्र,
मर्यादा का मन
और
छल का मान रखने के लिए...
- Vishwa Deepak Lyricist
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