परिवर्तन
एक पिंजड़े की तरह है
जिसमें कैद है भविष्य का कोई तोता,
वह तोता जो रंग बदलता है
अपने इर्द-गिर्द की हवा के हिसाब से,
वह तोता
जिसकी तन्दुरूस्ती का पलड़ा
उसके जायके से भारी है
और उसके हाव-भाव
इसपर निर्भर करते हैं कि उसे
चना मिला है या मिला है
आखिरी रोटी का आखिरी निवाला...
यूँ कहें तो
परिवर्तन की खुशहाली या तंगहाली
उसके रहनुमाओं, उसके रखवालों
के हाथों में है..
लेकिन हमें
उस तोते का इतना ख्याल होता है
कि हम
हर पल डरते होते हैं
एक अनदिखे, अनसुने बाज से..
इसलिए हम
निकाल कर उन खिड़कियों की सलाखें,
वहाँ चुनवा देते हैं दीवारें
ताकि
उस तोते के तोते न उड़ जाएँ...
फिर तो बस
साँस हीं लेता रह जाता है वह तोता
या शायद... उतना भी नहीं,
हम इस तरह भूल जाते हैं तोते को
और नज़र रखते हैं बस पिंजड़े पर...
अब यह पिंजड़ा
तब्दील हो चुका होता है
भानुमति के पिटारे में...
इस पिटारे से फिर
कब, क्या, कैसा तोता निकले,
ज़िंदा या मुर्दा
किसे पता...
ऐसे में
भविष्य बन जाता है बोझ
परिवर्तन के लिए
और परिवर्तन हमारे लिए...
चलो आओ
इस पिंजड़े की खिड़कियाँ खोलें
और दें
भविष्य के तोते को
ज़िंदादिली के जामुन,
फिर देखो कैसे उचककर
परवाज़ भरता है यह तोता
परिवर्तन के पिंजड़े के साथ...
फिर देखो....काहे का बोझ...
- Vishwa Deepak Lyricist
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