Friday, July 06, 2012

तिल का ताड़


तुम लिख लेते हो..

रात भर या तो तिलचट्टे
के बादामी बदन,
छह टांगों
और कागज़ी पंखों
में ढूँढते रहते हो
बदरंग और
बजबजाती किस्मत के रहस्य,
जो भागते रहते हैं तुमसे
बिलबिलाकर..

या फिर किसी तिलमिलाते
"तिल" की
तरेरती आँखों में
गोंद डालकर
चिपकाते रहते हो
अपना प्रणय-निवेदन
और हार जाने पर
उन्हीं आँखों के मटियल पानी में
चप्पु थमाकर
उतारते रहते हो
अपनी कुंठा
ताकि
जितनी आगे बढे
तुम्हारी छिछली सोच,
उतनी हीं छिलती जाए
"उन" आँखों की अना..

अफ़सोस!
तुम न तो
कर पाते हो
अपनी किस्मत पे काबू,
न हीं उड़ेल पाते हो
"उन" आँखों में अमावस..

फिर भी,
करते हुए
तिल का ताड़,
तुम
लिखते रहते हो..

तुम लिख लेते हो!!

- Vishwa Deepak Lyricist

No comments: