तुम क्यों देखते हो ख्वाब..
क्या ख्वाब में उतरता है कोई आदिपुरूष
और धर जाता है तुम्हारी नींद की सीपियों में
सच्चाई, सफलता और संभावनाओं के मोती..
क्या ख्वाब में
तुम्हारे गाँव के बरगद पर लौट आती हैं,
पिछली पतझड़ में भागी हुई गिलहरियाँ..
क्या ख्वाब में अंबर का इद्रधनुष
थमा देता है अपनी प्रत्यंचा तुम्हें
ताकि
बेध कर आसमान
उतार लो तुम
गंगा एक बार फिर..
क्या ख्वाब में
आँगन की तुलसी
सूखते-सूखते
पकड़ लेती है जड़ तुम्हारी मिट्टी की
और खींचकर सबकी आँखों से संवेदनाएँ
फुदकने लगती है फिर से..
शायद हाँ
तुमने यह सब देखा है
बंद आँखों से
और जब खोली हैं आँखें
तो खो चुका होता है वसंत,
कुचली जा रही होती हैं तुलसियाँ
और
अंबर का बाण खींचा होता है
तुम्हारी तरफ हीं..
तुमने जब खोली हैं आँखें
तो जा चुका होता है आदिपुरूष..
तुम्हें उसी आदिपुरूष की तलाश है,
बस इसलिए
तुम देखते हो ख्वाब!!!
- Vishwa Deepak Lyricist
No comments:
Post a Comment