साँस में
उठते हुए धुएँ से कालिख काट के,
कैक्टस की शाख से काँटों का राशन छांट के,
रेत की बेचैनी को बहती नदी से बाँट के,
तालु की बिवाई और जिह्वा की दूरी पाट के
जी उठूँगा मैं जभी
जान लेना बस तभी
दर पे मेरे आई है...... मौत तकरीबन!!
आँख के
खलिहान की फसलों से पानी लूट के,
होश की अमराई पे मंजर चढा के झूठ के,
रीढ की चट्टान से पीपल के जैसे फूट के ,
रात की अलमारियों में नींद भर के, छूट के,
सो चलूँगा मैं जभी
जान लेना बस तभी
सर पे मेरे आई है..... मौत तकरीबन!!
- Vishwa Deepak Lyricist
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आँख के
खलिहान की फसलों से पानी लूट के,
होश की अमराई पे मंजर चढा के झूठ के,
रीढ की चट्टान से पीपल के जैसे फूट के ,
रात की अलमारियों में नींद भर के, छूट के,
बहुत गहन भाव
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