चलो
यहीं
इर्द-गिर्द
दो खेमें बाँट लें हम...
तुम उस तरफ़,
मैं इस तरफ़,
तुम माटी-माटी राग दो,
मैं पानी-पानी झाग दूँ,
तुम ढीठ हो लो ऐश में,
मैं रीढ मोड़ूँ तैश में,
ना भाऊँ मैं तुम्हें आँख एक,
ना मानूँ मैं भी धाक एक
और आएँ जब हम सामने
तो यूँ लगे कि ना कहीं
अब एक-दूसरे के हीं
दो कान काट लें हम...
दो खेमे बाँट लें हम...
जब यूँ कदम दो ओर हों,
ना दुश्मनी का तोड़ हो,
जब सारा जग या तो इधर
या उस तरफ़ उस छोर हो,
जब सब कहें कि दो बुरे
में से कोई एक हम चुनें,
तो इर्द-गिर्द झांक के,
गुड़-चीनी गिन्नी फांक के,
जो पुल बना हो बीच में,
उसको नखों से खींच के
वहीं खाई में हम डाल दें,
और इस तरह इक चाल से
उन दूरियों को तब हीं तब
खुश हो के पाट लें हम...
दो खेमे बाँट लें हम...
- Vishwa Deepak Lyricist
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