मेरे तमाम शब्द काल-कवलित हो गए हैं...
मैं अब लम्हों की लाठी लिए चल रहा हूँ बस,
कोई कागज़ की ज़मीन दे तो मैं उन लम्हों को गाड़ आऊँ
और कोल्हू के बैल की तरह बाँध आऊँ अपनी लेखनी को उस खूँटे से..
सालों तक घिसकर कम से कम एक शब्द तो बह निकलेगा -
या तो खून से या पसीने से लथपथ!!!
शब्दों के बिना मैं अपाहिज़
"अथाह शून्य" में लोटपोट कर रहा हूँ
सदियों से....
- Vishwa Deepak Lyricist
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