मैं जैसे ठहर-सा गया हूँ..
समुंदर में गोते लगाते हुए भी
यूँ लगता है मानो
पानी की सतह पे जम-से गए हैं मेरे पाँव..
मैं बस एक बूँद को तकता रहता हूँ..
या तो उस बूँद से निजात मिले
या
उड़ चले वह बूँद भी मेरे साथ-साथ..
अबके मानसून में मैं छूना चाहता हूँ आसमान को..
- Vishwa Deepak Lyricist
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