मुझमें पनपता है गुस्सा हर दिन
और रात तक यह चाह उग आती है
कि इस गुस्से की पूँछ पकड़
खींच लूँ अपनी पेशानी से
और फेंक आऊँ किसी "नामुराद" के कानों में..
यह कनगोजर वहीं का बाशिंदा है,
रह लेगा वहाँ मज़े से..
लेकिन फिर सोचता हूँ कि
यह चाह वापस न ले आए
इस परजीवी को फिर मुझ तक..
यह गुस्सा रहे तो भी आफत,
जाए तो भी आफत...
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
पर इतना गुस्सा क्यों ? मन के भावों को कहने का अनूठा अंदाज़
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