तेरी आँखें कारखाना हैं क्या,
अहसास कारीगर हैं जिनमें..
फिर रोज़-रोज़ का रोना क्यों?
_________________
कभी शिकवों पे हँसते थे,
अभी हँस दें तो शिकवे हों..
गिरा है औंधे मुँह रिश्ता..
________________
कल पर निकल आएँगे कानों के भी,
आज सुन लो मुझे गर सुनना हो..
मैं बोल के उड़ जाऊँगा यूँ भी...
________________
उसे ग़म है कि उसकी खुशियों का कद छोटा है,
मुझे खुशी है कि ग़म की पकड़ कमज़ोर हुई..
मैं ज़िंदा हूँ और वो मरता है खुशी रखकर भी..
_________________
कुछ झांकता है अंदर, कुछ भागता है बाहर,
मैं खुद से अजनबी-सा यह खेल देखता हूँ..
सीने में जंग छिड़ी है ईमां और बुज़्दिली में...
- Vishwa Deepak Lyricist
No comments:
Post a Comment