Tuesday, January 01, 2013

बदलाव


कैलेण्डर बदल लिया है,
अब दिन-रात भी बदल लें..

पिरोयें रोशनी सुबह में
और सांझ के डूबते सूरज से
रात की अंधी-खुरदरी पगडंडियों के लिए
माँग लें धूप की टॉर्च,
परछाईं की चप्पलें...

सड़ती और सड़ी-गली सोच को
न सिर्फ हटाएँ शब्दों से,
बल्कि माथे में थमे हुए तालाब को भी
कर दें हरी काई और शैवालों से मुक्त,
उगाएँ सिंघाड़ें या फिर कमल
ताकि धमनियाँ और शिरे
ज़िंदा रहें, जागरूक रहें
और धड़कता-महकता रहे शरीर
आपादमस्तक...

सजाएँ जीने के ख्याल
और पलट दें
"मैरियाना ट्रेंच" तक धँसे हौसलों को
ताकि हर आह में खड़ा हो
एक नया एवरेस्ट;
तान दें अपनी आँखों के सामने
दो हथेलियाँ
और चढकर उनपे
बढा लें अपना कद
पौने दो या दो गुणा...

बदल दें रात और दिन,
क्षण, पक्ष, महीने
लेकिन सबसे पहले
बदलें खुद को -
अंदर की पलकें खोल
खंगालें हृदय ,
हटाकर हाड़-माँस
गूँथ लें फूल, पत्तियाँ,
सागर, आसमान, पड़ाड़
और आस-पास के
करोड़ों चेहरें, लाखों बुत, एक इंसानियत...

कैलेण्डर बदल लिया है,
अब बदल लें
कागज़, रोशनाई, आँसू, मुस्कान,
नज़र, नज़रिया
और सबसे बढकर
परिभाषा........बदलाव की...

- Vishwa Deepak Lyricist

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