Tuesday, January 08, 2013

ओक भर की आँख में


नाटे कद की ज़िंदगी
फैलती है जा रही..

आसमां से बोल दो
नए रिश्ते ना बाँधा करे,
हाथ की ऊँचाई अब
है देह को छका रही..

नाटे कद की ज़िंदगी..

शाम की ढलान पे
हैं सुर्ख लब सिमट रहे,
ओक भर की आँख में
है रात छलछला रही..

नाटे कद की ज़िंदगी..

वो वहीं से बिन कहे
लौट गए आज भी,
हमने "प्यार" सुन लिया,
अब साँस बड़बड़ा रही..

नाटे कद की ज़िंदगी,
फैलती है जा रही...

- Vishwa Deepak Lyricist