Thursday, January 03, 2013
दादी जी
पोरों में बर्फ जम जाए
तो टूट जाता है पत्थर भी,
कट-कटा उठते हैं दाँत लोहे के
जब सर पर काबिज़ होता है कुहासा...
फिर वह तो एक सौ-साला इमारत थी..
हाय!
छत उठ गई पोते-पोतियों के सर से,
भगवान घर की आत्मा को शांति दे...
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Vishwa Deepak Lyricist
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