ज़िंदगी जुए से है निकल पड़ी,
ज़िंदगी धुएँ से है निकल पड़ी..
ज़िंदगी अब होश में है,
आपकी ज़मीन पर चल रही है,
जोश में है..
फूल के लिबास में,
ओस के कयास में,
खुशबूओं से खेलती
जूही, अमलतास में,
ज़िंदगी
धूप की छुअन से है मचल पड़ी...
ज़िंदगी लिजलिजी धुंध से निकल पड़ी..
ज़िंदगी अशर्फ़ी हुई कारण आपके,
रूह में मिलाकर देह को खिला दूँ,
अनमोल बर्फ़ी हुई कारण आपके...
आपके..
ज़िंदगी आपकी आँख में है ढल पड़ी..
हारे हुए जुए से जीतकर निकल पड़ी,
काले हुए धुएँ से बीतकर निकल पड़ी,
ज़िंदगी आपकी ज़मीन पर जो चल पड़ी...
ज़िंदगी..
- Vishwa Deepak Lyricist
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