उस शायर के नाम,
जिसने
रदीफ़ और काफ़िया को इतनी दी तवज्जो
कि भूल गया
वज़न दुरूस्त करना...
इंसान तो बना डाला
लेकिन ईमान कसने में कर गया कंजूसी..
शायर,
आज तुम्हारी ग़ज़ल
जगह-जगह से चुभने लगी है,
ज़हरीले नाखून उग आए हैं उसमें..
ज़रा
एक बार तुम भी यह ग़ज़ल गुनगुना कर देखो,
लहुलूहान हो जाओगे..
.
.
.
दुनिया का यह मुशायरा
चाहता है ग़ज़लों की नई खेंप -
तंदुरुस्त, वज़नदार..
अपना पुराना दीवान फेंक दो
और नया लिखो सिरे से..
तुम सुन रहे हो ना शायर?
सुनो तो...
- Vishwa Deepak Lyricist
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