मैं तकरीबन हर उस किसी को प्यारा हूँ
जो मुझे "उस तरह" प्यार नहीं करती..
और जो करती थी बातें मुझे "उस तरह" प्यार करने की,
उसे इस तरह प्यारा हुआ मैं
कि आजकल
मुझसे नहीं करती बात तक;
शायद डरती है
कि कहीं कोई ठेस न लग जाए मुझे...
वह नहीं करती है बात
और यही बात मुझे चुभती है सबसे ज्यादा..
वे करती हैं बातें
जिन्हें मैं बहुत प्यारा हूँ,
लेकिन उनकी बातें मुझे न प्यार देती हैं और न हीं कोई ठेस..
अब सोचता हूँ
कि "प्यारा मानने" और "उस तरह प्यार करने" के बीच
क्यों है यह पुल
जो बदल देता है परिभाषा प्यार और ठेस की?
मैं पेंडुलम की तरह टहलते हुए इस पुल पर
कोसता हूँ उन्हें
जो या तो इस तरफ हैं या उस तरफ
और जो ज़मीन बाँट कर बैठी हुई हैं सौतनों की तरह...
मै ,
जिसे "प्यारा" कहने वाली "उस तरह" का प्यार नहीं करती,
फेरता हूँ निगाहें दोनों तरफों से
और कूद पड़ता हूँ
पुल के नीचे बहती
.
.
नफरत की नदी में...
इस नदी में
यकीन मानिए...... बेहद सुकून है....
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
पेंडुलम के दोनों ध्रुव क्या मानसिक दुरुहता के व्यक्त करते हैं या निर्णय न ले पाने की कमजोरी..
कविता गहरे उतरना तो चाहती है पर अचानक इरादा बदल देती हैं
कविता का प्रवाह प्रभावी और ले अच्छी लगी
धन्यवाद
nafrat me sukoon kabhi nahi mil sakta. ho sakta hai wo nadi kisi aur cheez ki ho ... ya aap nadi me kabhi koode hi nahi
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