एरोप्लेन:
नाक नुकीली लिए फिर रहा
एरोप्लेन क्या सूंघ रहा है?
फाड़ के बादल रस पीएगा?
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बड़ी काई है आसमान में,
खुरपी लेकर चलो छील दें..
धार तेज़ है एरोप्लेन की..
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ज़िंदगी:
नींद तो दकियानूसी है,
खैर कि बागी है करवट..
प्यार जगाए रस्म तोड़ के...
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बचकानी है मेरी हँसी,
मेरा चुप रहना है सयानों-सा..
मेरा रोना... ज्ञान की चाभी है...
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खुश रहना बुरी लत है,
फिर कुछ भी बुरा नहीं दिखता....
खुश रहो कि "तुम" भी अच्छे हो..
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ज़िंदगी कंपकंपी से ज्यादा है,
मौत ओढूँ भी तो मिलेगा चैन नहीं..
खुदा! मौसम बदल या दे कंबल नया..
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कविता:
चार दिन क़लम न उठाऊँ तो उग आते हैं खर-पतवार,
बड़ी जल्दी रहती है मेरे शब्दों को ऊसर होने की..
कतरता हूँ, छांटता हू, फिर टांकता हूँ कागज़ पर..
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
खुश रहना बुरी लत है,
फिर कुछ भी बुरा नहीं दिखता....
खुश रहो कि "तुम" भी अच्छे हो..
waah!
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