Friday, October 12, 2012

हारता रहा अपनी नींदें


रात भर तुम्हें सोचता रहा..
रात भर तुम्हारी बादामी आँखें बढाती रहीं मेरी याददाश्त..
रात भर बुनता रहा तुम्हारी पलकों से एक कंबल, एक बिस्तर..
रात भर लेता रहा करवटें तुम्हारे चेहरे के चारों ओर..

रात भर उधेड़ता रहा दो साँसों के बीच के धागे को..

रात भर बस जीता रहा तुम्हें... और हारता रहा अपनी नींदें...

रात भर कातता रहा मैं एक रात,
तुम्हारे ख्वाब में!!

- Vishwa Deepak Lyricist

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

बहुत ही बढ़िया

Pratik Maheshwari said...

बढ़िया.. पर किसके लिए लिखा है ये भी बताइए :)

Vandana Ramasingh said...


रात भर कातता रहा मैं एक रात,
तुम्हारे ख्वाब में!!

बहुत सुन्दर

विश्व दीपक said...

आप दोनों का तह-ए-दिल से शुक्रिया...

प्रतीक भाई, अभी तक तो कोई नहीं... हाँ उम्मीद है कि इसे पढकर कोई आ जाए :)