चलो, कुम्हलाया जाए...
हिस्से की हम धूप खा चुके,
रात से "मन" भर ओस पा चुके,
भौरों के संग धुनी रमा चुके,
खाद-पानी के भोग लगा चुके,
आसमान से मेघ ला चुके,
हुआ बहुत, अब जाया जाए,
चलो, कुम्हलाया जाए....
अब औरों को हक़ लेने दो,
गगन का सूरज तक लेने दो,
हवा की चीनी चख लेने दो,
नसों में माटी रख लेने दो,
उन्हें भी थोड़ा थक लेने दो,
सुनो, ज़रा सुस्ताया जाए,
चलो, कुम्हलाया जाए....
चलो!!!!!!
- Vishwa Deepak Lyricist
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अब औरों को हक़ लेने दो,
गगन का सूरज तक लेने दो,
हवा की चीनी चख लेने दो,
नसों में माटी रख लेने दो,
उन्हें भी थोड़ा थक लेने दो,
वाह ... बहुत सुंदर खयाल
बेहद शुक्रिया संगीता जी..
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