Thursday, October 11, 2012

नए सफ़र पे


आओ चलें उफ़क़ की ओर..

रात सजा के,
चाँद जला के,
दिन हो जब तो
धूप उगा के,
धूप गिरे तो
छांव टिका के,
आस की लाठी
हाथ में धर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

कंकड़-पत्थर
टालते जाएँ,
पथ पे पदचर
डालते जाएँ,
नव-संवत्सर
ढालते जाएँ,
एक-एक पल अपने हिस्से
कर लें नभ के पंख कतर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

चलो चलें हम
उफ़क़ की ओर,
शफ़क रखें हम
शफ़क़ की ओर,
कदम बढाएँ
अदब की ओर,
नई नब्ज़ से, नए लफ़्ज़ ले,
बढें.. हम बढें और निखर के,
चलें... हम चलें... नए सफ़र पे..

- Vishwa Deepak Lyricist

No comments: