रेवड़ी के भाव
या
चाय-चानी के सही अनुपात में
हर साँस
तुम्हें तौलना-मापना होता है
मेरा प्यार...
मैं गुलाब-जल या केवड़े की तरह
अपनी नसों में
महसूसता रहता हूँ
तुम्हारी मौजूदगी...
तुम समष्टि में व्यष्टि ढूँढती हो
और मैं व्यष्टि में समष्टि..
बस इतना हीं फर्क है
मेरे चाहने
और तुम्हारे
चाहे जाने की चाह रखने में...
बस इतना हीं फर्क है
जो
दो फांक किए हुए है... हम दोनों को!!!!
- Vishwa Deepak Lyricist
3 comments:
बहुत खूबसूरती से फर्क को कहा है ॥
शुक्रिया संगीता जी...
bahu badhiya
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