Monday, June 25, 2012

अबके मानसून में


मैं जैसे ठहर-सा गया हूँ..

समुंदर में गोते लगाते हुए भी
यूँ लगता है मानो
पानी की सतह पे जम-से गए हैं मेरे पाँव..

मैं बस एक बूँद को तकता रहता हूँ..

या तो उस बूँद से निजात मिले
या
उड़ चले वह बूँद भी मेरे साथ-साथ..

अबके मानसून में मैं छूना चाहता हूँ आसमान को..

- Vishwa Deepak Lyricist

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