गर
मालूम हो कि
दो कदम पर मौत हो
और
कदम दर कदम
तुम चल रही हो साथ मेरे...
तो
किस तरह
उतार दूँ ज़िंदगी?
तुम्हारा रहना
कचोटता रहेगा मुझे
और
तुम्हारा जाना
भी तो
मौत से कम नहीं....
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तुम्हें छोड़ आया हूँ वहीं
जहाँ तुमने कभी छोड़ा था मुझे...
अबकी बार
चलो
साथ चलें दोनों
और लौट आएँ अपने-अपने रास्ते..
फिर
न तुम पर कोई इल्जाम,
न मुझ पर कोई इल्जाम...
- Vishwa Deepak Lyricist
3 comments:
na tumpe koi ilzaam na mujh pe....ye waali poem bahut acchi lagi!
बहुत खूब क्षणिकाएं!
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाने जैसी कविता अच्छी लगी !
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