नन्हीं ऊँगलियों पे वह गिनती है
लिजलिजे घर से उजले आंगन तक की दूरी
और झेंप कर हल्का
करती है
सफर के समय का हिसाब..
थक गई है बेचारी
फिर भी नही भूलती
हाथ हिलाकर खबर देना
अपनी सलामती का
उस "आसमां" वाले अपने रहबर को..
खैर
एकटक
निहार रही है अभी
आँगन की आदमकद मूर्तियों को,
फूँक रही है उनमें जान
और बड़े हीं "दो टूक" लहजे में
कह रही है अपनी "तुलसी" को
कि
"मैं हीं आनी थी गोद भरने तुम्हारी... कोई और नहीं"
कह रही है
वह "दो घंटे" की "भांजी" मेरी..
- Vishwa Deepak Lyricist
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सुबह 6:30 में लिखी यह कविता... उसके जन्म के दो घंटे बाद...
1 comment:
जनम दिन मुबारक हो ...
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