Tuesday, August 21, 2012

मेरे मस्तिष्क


मेरे मस्तिष्क
कहीं और चल!

ना देह को तेरा ज्ञान है,
ना रूह को तेरी कद्र है,
अस्तित्व तेरा
धुंध है,
है धार भी तो
कुंद है,
इस घर में तेरा मोल क्या,
इस घर में सब हीं तेज़ हैं,
सब जानते हैं सोचना,
क्या सोचते हैं.. जान के
बदनाम होने से भला
मेरे मस्तिष्क
कहीं और चल!

- Vishwa Deepak Lyricist

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