आँख उतर रही है सीढियों से,
नींद चढ जाएगी ऊपर..दबे पाँव..बिल्लियों की तरह...
घंटियाँ ख्वाब की बँधी हों तो ज़रा चौंकूं भी...
घंटियाँ ख्वाब की गूंगी हैं, बहरी आँखें हैं,
नींद मखमल है तलवों तक रेशों से..
कौन रोकेगा? चढेगी माथे में.... चूहे खाएगी..
चूहे खाएगी,
सोंच खाएगी,
नोंच खाएगी,
रोज़ खाएगी,
आँख उतरते-उतरते... उतर जाएगी...
- Vishwa Deepak Lyricist
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