जो कमबख्त पत्थर थे कल तक मेरे घर,
वो फूलों में तब्दील होने लगे हैं..
इलाही ये क्या माज़रा है बता दो,
बियाबां जो सब झील होने लगे हैं...
हूँ ज़िंदा या मुर्दा कि वो सारे सादिक़
मुखौटों को यूँ छील, होने लगे हैं..
सादिक़ = pure, honest, true
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
बहुत खूब ... मन भावन शेर हैं सभी ...
शुक्रिया दिगम्बर जी..
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