तथास्तु!
और तभी
क्षणभंगुर हो गया
क्षण..
मैं तब से
ढूँढ रहा हूँ उस सुख को
जिसके दंभ ने
तोड़ दी थी
दु:ख की सहनशक्ति
और
तप उठा था दु:ख
समय के तपोवन में...
एक तथास्तु
और
क्षणभंगुर हो गए थे
क्षण,
सुख,
दु:ख.... सभी....
मैं तभी से व्यथित हूँ
उस सुख से
जिसने न छोड़ा
दु:ख को भी
क्षण से अधिक का...
दु:ख-
ऋणी हूँ जिसका मैं
सदियों से
वह एक क्षण का मात्र?
क्या प्रयोजन,
वृथा है..
उससे श्रेयस्कर तो है
सुखकर मृत्यु...
और क्या!!!!
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
आपकी लेखनी में गहराई है... शुभकामनाएं...
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