Monday, August 06, 2012

क्षणभंगुर


तथास्तु!

और तभी
क्षणभंगुर हो गया
क्षण..

मैं तब से
ढूँढ रहा हूँ उस सुख को
जिसके दंभ ने
तोड़ दी थी
दु:ख की सहनशक्ति
और
तप उठा था दु:ख
समय के तपोवन में...

एक तथास्तु
और
क्षणभंगुर हो गए थे
क्षण,
सुख,
दु:ख.... सभी....

मैं तभी से व्यथित हूँ
उस सुख से
जिसने न छोड़ा
दु:ख को भी
क्षण से अधिक का...

दु:ख-
ऋणी हूँ जिसका मैं
सदियों से
वह एक क्षण का मात्र?
क्या प्रयोजन,
वृथा है..

उससे श्रेयस्कर तो है
सुखकर मृत्यु...

और क्या!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

1 comment:

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' said...

आपकी लेखनी में गहराई है... शुभकामनाएं...