Friday, August 17, 2012

शुतुरमुर्ग रेत में


तालीम के सरमायेदार!
बेरोज़गार फिर रहे
हैं लफ़्ज़ बेमानी हज़ार...

सूखे की मार!!

आँखों में दरिया काट के
जब से दिया सहरा उतार..
तालीम क्या, तहरीर क्या,
तहज़ीब... नाउम्मीदवार..

जा रे सुखनवर
अबकी बार,
बनके शुतुरमुर्ग रेत में
सर डालना जो ज़ार-ज़ार,
एक बूंद भर हीं थूक में
हो जाना गर्क बेइख्तियार...

ईमां के पार..

हैं कूच कर गए सभी
दानिश्वर क़ुव्वत उजाड़..

तालीम के सरमायेदार,
तारीक़ के सरमायेदार..

- Vishwa Deepak Lyricist

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