Sunday, March 09, 2014

तुम्हारा मौन


आँखें मूंदो और महसूस करो -
ज़िंदगी तुम्हारे दो शब्दों के बीच के अंतराल में
कुलाचें भर रही है,
खिड़कियाँ खुली हैं आमने-सामने की
और
बहुत कुछ अनकहा गुजर रहा है
दीवारों की सीमाएँ तोड़कर..

मैंने कुछ कहा नहीं है,
फिर भी
ध्वनियों की अठखेलियाँ हैं तुम्हारे सीने में
और
तुम्हारा मौन जादूगर-सा
शून्य से उतार रहा है शब्द
टुकड़ों में...

आँखें मूंदो और महसूस करो-
गले के इर्द-गिर्द छिल रही है
शब्दों की चहारदीवारी
और
कई अहसास सशरीर पहुँच रहे हैं
तुम्हारे-मेरे बीच...

सुनो!
संभालकर रख लो इन्हें...

ये अपररूप हैं प्रेम के.....

इन्होंने मृत्यु को जीत लिया है!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

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