साल भर पुरानी वह बात,
जिसकी उम्र महज एक साल है-
बड़ी हीं ताजी है।
मेरी ’बुक-सेल्फ’ की सबसे बोरिंग किताब में भी
भर गई थीं रंगीनियां...
आबाद हो चले थे
दिन-रात के कई ’अनाथ’ हिस्से..
नींद हो चली थी साझी
और ख्वाब पूरे..
अब बेफिक्री फिक्र देती थी
और फिक्र का बड़ा-सा बंडल
उतर गया था किन्हीं ’और’ दो आँखों में..
मेरे नाम के मायने भी बदल गए थे शायद..
तभी तो
भले पुकारा जाऊँ सौ बार;
चिढता न था...
सच में-
साल भर पुरानी वह बात,
जिसकी उम्र महज एक साल है-
बड़ी हीं ताजी है।
और हर पल जवां रखा है इसे
तुमने...
बस तुमने!!!
- Vishwa Deepak Lyricist
3 comments:
हमने कुछ नहीं किया दीपक जी! हमें नाहक न लपेटो!!!
हाहा... आप भी ना अंकल जी :)
beautiful
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