Tuesday, April 20, 2010
तो क्या करिए..
इफ़रात में गर इनकार मिले,
तो क्या करिए जब प्यार मिले.......
जब नगद की भद ना बची रहे,
मोहलत की हद ना बची रहे,
जुर्रत की ज़द ना बची रहे,
ठीक तभी
हाँ ठीक तभी
संगदिल साहूकारों के
हीं साथ खड़े होशियारों से
बिना किसी मियाद के हीं
उधार मिले
तो क्या करिए....
इज़हार की शक्ल से अंजाने
किसी आशिक़ को
औनी-पौनी हीं सही
मगर
"हामी" की हूर का किसी डगर
दीदार मिले
तो क्या करिए...
जिसे
इफ़रात में बस इनकार मिले,
इंतज़ार मिले...इंतज़ार मिले,
वो जी उट्ठे या मर जाए
जो नज़र कभी इक बार मिले...
तो क्या करिए जब प्यार मिले?
-विश्व दीपक
Monday, April 19, 2010
हुनर
मुझे बस ये हुनर दे दे,
मेरे कांधों पे सर दे दे।
निभा लूँगा मैं तारों से,
मुझे बस तू सिफर दे दे।
बुझी जाती है आवाज़ें,
निगाहों में शरर दे दे।
भिड़ूँ कैसे बिसातों से,
दलीलों के भंवर दे दे।
यूँ हीं तन्हा गुजर कर लूँ,
मुझे जो तू जिगर दे दे।
-विश्व दीपक
Friday, April 09, 2010
क्या खूब है ये दूब भी...
क्या खूब है ये दूब भी....
शबनम जो होठों पे ढले
तो हल्की तबस्सुम खिले,
फिर लोक-लाज भूल ये,
रेशम की चादर ओढ ले..
तलवार-सी यह दूब तब
बिछ जाए है पैरों तले...
एक बावला बेहोश-सा
जब इसके सीने को दले,
सह जाए ये सब दर्द हीं,
क्या जाने इसको क्या मिले,
फिर बावली यह दूब तब
खुद की हीं खुशियाँ तोड़ ले
और बेरहम कातिल की दो
आँखों को रौशन कर चले..
अपने जहां को राख कर
ज़ख्मों को रखके ताख पर
अपनों के वास्ते ये जब
हर सुबह मिट्टी में गले,
उस वक्त इसकी अहमियत
लगती "मेरे महबूब"-सी..
क्या खूब है ये दूब-भी...
इस रचना से मैंने "उपमा" को "उपमेय" और "उपमेय" को "उपमा" बनाने की कोशिश की है... यह पता करना आपकी जिम्मेवारी है कि "दूब" और "महबूब" में "उपमा" कौन है और "उपमेय" कौन? :)
-विश्व दीपक
कि ये हसरत तो हल्की है..
बड़ी तीखी ये तल्खी है,
तेरी नज़रों से छलकी है....
ये मुझसे रंज है तेरा ,
या ये चाहत की झलकी है?
मैं इनमें जज्ब हो जाऊँ,
कि ये हसरत तो हल्की है !!!
जां देकर लूँ हँसी तेरी,
या ये कीमत भी कल की है?
लुटा ना होश गैरों पे,
कि ये दौलत तो पल की है...
बड़ी तीखी ये तल्खी है,
तेरी नज़रों से छलकी है....
-विश्व दीपक
Sunday, April 04, 2010
उड़न छू..
मुखड़ा
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा चल उड़न छू..
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा उड़न छू..
अंतरा 1
तोले मोले जो तू हर दफ़ा,
हौले हौले छीने हर नफ़ा,
क्या बुरा कि आनाकानी करके
तेरे से बच लूँ..
तोले मोले जो तू हर दफ़ा,
हौले हौले छीने हर नफ़ा,
क्या बुरा कि आनाकानी करके
तेरे से बच लूँ..
छोरी! तू है काँटों जैसी लू.
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा चल उड़न छू..
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा उड़न छू
अंतरा 2
झोंके धोखे हीं तू हर जगह,
तोड़े वादे सारे हर तरह,
ये बता कि आवाज़ाही तेरी
कैसे मैं रोकूँ..
झोंके धोखे हीं तू हर जगह,
तोड़े वादे सारे हर तरह,
ये बता कि आवाज़ाही तेरी
कैसे मैं रोकूँ..
छोरी! मैं ना जलना हो के धूँ..
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा चल उड़न छू..
आते जाते
काटे रास्ता क्यूँ,
बड़ी जिद्दी है री तू
हो जा उड़न छू
-विश्व दीपक
Saturday, April 03, 2010
या मेरे परवरदिगार
मुखड़ा
रूखी-सूखी भूख ओढकर अजब बनाया भेष,
आसमान के तारे चुगना, दस्तूर-ए-दरवेश।
अंतरा 1
बिखरे दयार में,
इस रोजगार में,
परवरदिगार , या मेरे परवरदिगार आ,
घनी रात छा गई है, रस्ता ज़रा दिखा..
खुद को तो कर बयाँ,
खुदा! मौला! अल्लाह!
खुद को तो कर बयाँ,
तेरा नूर हो अयाँ..
सुन ले इस दर-बदर दरवेश की सदा,
परवरदिगार, या मेरे परवरदिगार आ।
अंतरा 2
सज़दे किया करूँ,
तोहमत लिया करूँ,
बेखौफ, बेसबब, दर तेरे ऎ खुदा,
घनी रात छा गई है, रस्ता ज़रा दिखा..
रहबर , ओ रहनुमा,
खुदा! मौला! अल्लाह!
रहबर, ओ रहनुमा,
तुझपर हीं है गुमाँ..
सुन ले इस दर-बदर दरवेश की सदा,
परवरदिगार, या मेरे परवरदिगार आ।
-विश्व दीपक
खुदाया
मुखड़ा
वादो की बगिया को कैसे भरूँ,
सपनों की नदिया में कब तक बहूँ,
वादो की बगिया को कैसे भरूँ,
सपनों की नदिया में कब तक बहूँ।
मेरा साहिल वही है,
वो ग़ाफ़िल नहीं है,
मेरा साहिल वही है,
वो गाफ़िल नहीं है।
दिलासा ये हासिल मैं कैसे करूँ
खुदाया.........
अंतरा 1
इशारा कोई तो नज़र से हो,
नज़ारा कोई तो उधर से हो,
इशारा कोई तो नज़र से हो,
नज़ारा कोई तो उधर से हो।
चाहत दम-ब-दम,
संग-संग उस-सा हम-कदम,
दिलासा ये हासिल मैं कैसे करूँ,
खुदाया.........
अंतरा 2
सवेरा कभी तो अलग-सा हो,
बसेरा कभी तो फ़लक-सा हो,
सवेरा कभी तो अलग-सा हो,
बसेरा कभी तो फ़लक-सा हो।
मन्नत दम-ब-दम,
संग-संग उस-सा हम-सुखन,
दिलासा ये हासिल मैं कैसे करूँ,
खुदाया.........
-विश्व दीपक
ये सारी सुबहें
मुखड़ा
ये सारी सुबहें , शामें ,रातें,
हैं शायद तेरी मेरी बातें,
जो हल्के से मचल के कहकशों में
पुल बनाएँ।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
अंतरा 1
मैं हूँ वो तू है,
चाहत हर सू है,
फिर क्या ज़िक्र हो,
यह तो ज़ाहिर है,
रब भी माहिर है,
फिर क्यों फ़िक्र हो।
मैं हूँ वो तू है,
चाहत हर सू है,
फिर क्या ज़िक्र हो,
यह तो ज़ाहिर है,
रब भी माहिर है,
फिर क्यों फ़िक्र हो।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
अंतरा 2
गुमसुम महफ़िल को,
प्यासे साहिल को,
दिलकश अब्र तू,
तू जो हासिल है,
रब भी कामिल है,
सब का सब्र तू।
गुमसुम महफ़िल को,
प्यासे साहिल को,
दिलकश अब्र तू,
तू जो हासिल है,
रब भी कामिल है,
सब का सब्र तू।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
-विश्व दीपक
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