Saturday, April 03, 2010
ये सारी सुबहें
मुखड़ा
ये सारी सुबहें , शामें ,रातें,
हैं शायद तेरी मेरी बातें,
जो हल्के से मचल के कहकशों में
पुल बनाएँ।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
अंतरा 1
मैं हूँ वो तू है,
चाहत हर सू है,
फिर क्या ज़िक्र हो,
यह तो ज़ाहिर है,
रब भी माहिर है,
फिर क्यों फ़िक्र हो।
मैं हूँ वो तू है,
चाहत हर सू है,
फिर क्या ज़िक्र हो,
यह तो ज़ाहिर है,
रब भी माहिर है,
फिर क्यों फ़िक्र हो।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
अंतरा 2
गुमसुम महफ़िल को,
प्यासे साहिल को,
दिलकश अब्र तू,
तू जो हासिल है,
रब भी कामिल है,
सब का सब्र तू।
गुमसुम महफ़िल को,
प्यासे साहिल को,
दिलकश अब्र तू,
तू जो हासिल है,
रब भी कामिल है,
सब का सब्र तू।
ये तेरे शिकवे, वादे, नाले
हैं बेशक मय के महके प्याले,
जो छलके तो संभल के ख्वाहिशों के
गुल खिलाएँ।
-विश्व दीपक
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