मुँह अंधेरे
आँखों का आबनूसी रंग
उड़ेल दिया
मेरी उतरती पलकों पर..
शर्म से गुलाबी हो गए गाल
और लब सुर्ख..
तुमने डिंपलों में डुबोई
अपनी उंगलियाँ
और एक छटांक सूरज निकालकर
भर दी मेरी मांग..
एक बार फिर
फैल गया फागुन
चारों ओर..
काश!
हर दिन की होली यूँ हीं बनी रहे...
आमीन!!!!
- Vishwa Deepak Lyricist