Thursday, March 14, 2013

एक छटांक सूरज


मुँह अंधेरे
आँखों का आबनूसी रंग
उड़ेल दिया
मेरी उतरती पलकों पर..

शर्म से गुलाबी हो गए गाल
और लब सुर्ख..

तुमने डिंपलों में डुबोई
अपनी उंगलियाँ
और एक छटांक सूरज निकालकर
भर दी मेरी मांग..

एक बार फिर
फैल गया फागुन
चारों ओर..

काश!
हर दिन की होली यूँ हीं बनी रहे...

आमीन!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

Friday, March 01, 2013

मैं एक दिन


मैं एक दिन लिखूँगा खुद को

तुम उस दिन भी नकार देना
मेरे लिखे को
आदतन..

और मैं
निकल जाऊँगा
तुम्हारी अपेक्षाओं से परे

बिल्कुल अपनी कविताओं की तरह

हँसते हुए........ तुमपे!!!

- Vishwa Deepak Lyricist