Monday, February 08, 2010
मैं अब भी
मैं अब भी उसे बुरा नहीं कहता...
वो जो
आँखों के सामने रहके तड़पाती है,
बारहा आँखों के पीछे भी उतर आती है
ख्वाबों के झरोखे से
और उड़ा जाती है नींद.......
मैं नींद में भी उससे कुछ कह नहीं पाता...
बस सुनता रहता हूँ उसकी जबां..
जो
चुटखी भर हिन्दी,
नाखून भर पंजाबी
और हथेली भर अंग्रेजी
का पुट लिए रहती है....
क्या कुछ कह जाती है वो...
मुझे उसकी बातें सुनाई नहीं पड़ती,
हाँ
इतना होता है कि
उसके लबों की जुंबिश,
लबों की लरजिश
जम जाती है सीने में .....
और मेरी धड़कन
मेरा साथ छोड़ने लगती है...
ठीक वैसे हीं
जैसे
उसे देखते वक्त होता है........
मैं तब भी कोई शिकायत नहीं करता..
मैं तब भी उसे बुरा नहीं कहता..
-विश्व दीपक
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2 comments:
mast likha hai.... blessings
wah, wah, kya bat hai sir ;)
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