चाहत की चरस
यही है अहद तुझे तकके मैं आहें न भरूँगा,
मालूम है कि मुझसे तो निभती नहीं कसमें।
एक शौक है दिल ज़ार-ज़ार होने पर हँसना,
इसी शौक से तो आज भी है ज़िंदगी नस में।
इस बार भी किसी माहरू ने ओढा है चेहरा,
बस देखिए उल्काएँ कब जलती हैं हवस में।
तुझे जानता ऐन वक्त तो बनता न दीवाना,
ज़ाहिर है बेवफ़ाई प’ अब दिल नहीं बस में।
लुट जाएगा ’तन्हा’ अगर सुधरेगा नहीं तो,
माना कि नशा है बड़ा चाहत की चरस में।
-विश्व दीपक
2 comments:
ही है अहद तुझे तकके मैं आहें न भरूँगा,
मालूम है कि मुझसे तो निभती नहीं कसमें।
bahut achhe ...
डाक्टर साहब,
हौसला-आफ़ज़ाई का शुक्रिया।
-विश्व दीपक
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