वो चली
अटखेली
तेरे सीने से
मेरे सीने तक|
मैं होश बचाकर क्या जीतूँ ?
तुझे आँख चुराकर क्या हासिल?
हम मिलकर साँस -साँस बोएँ,
दो दिलके आस-पास बोएँ,
जन्मे तो दोनों का हिस्सा,
कुछ मेरा- कुछ तेरा किस्सा,
एक मीठी-सी
निम्बोली
तेरे सीने से
मेरे सीने तक|
तू बारिश हो ले भादो की
मैं अगहन की सौंधी-सी धूप ,
हम साथ-साथ थिरकें-ठिठकें
ले-लेकर एक-दूजे का रूप!
हम कभी मेंड़ ,कभी खेत बनें,
फल , मिट्टी , पानी, रेत बनें,
हम हर मौसम की छाया हों,
हर मौसम हममें समाया हो,
खुशियों की
यह रंगोली
तेरे सीने से
मेरे सीने तक |
ये चली
अटखेली ......
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
सुन्दर
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