Thursday, December 21, 2017

तुम हँसना


जब घाम गिरे
या बचकानी दुनिया के फिकरे
दो कौड़ी के दाम गिरें,
तुम हँसना!

एक माया है,
दिन-रात नज़र का साया है,
उनकी कथनी से क्या हासिल,
खुद में रखना खुद को शामिल,
बढते जाना,
गढते जाना,
हर नींद ख़्वाब चढते जाना,
फिर चाहे अनथक पैरों पर
धरती के जो इल्ज़ाम गिरें,
तुम हँसना!

हमने तुममें साँसें फूँकी?
ना!
तुमने हममें साँसें फूँकी,
तुमने हममें आसें फूँकी,
खुशियों में जीवन आ उतरा,
घर में एक आँगन आ उतरा,
हम ऋणी तुम्हारे हैं बेटी,
तुम खुद हमसे उऋण रहना,
और चाहे जितनी भी शर्त्तें
तुमपर अपनों के नाम गिरें,
तुम हँसना!

- Vishwa Deepak Lyricist

1 comment:

deepa joshi said...

एक माया है,
दिन-रात नज़र का साया है,
उनकी कथनी से क्या हासिल,
खुद में रखना खुद को शामिल,
बढते जाना,
गढते जाना,......सुन्दर