Thursday, December 21, 2017

तुम हँसना


जब घाम गिरे
या बचकानी दुनिया के फिकरे
दो कौड़ी के दाम गिरें,
तुम हँसना!

एक माया है,
दिन-रात नज़र का साया है,
उनकी कथनी से क्या हासिल,
खुद में रखना खुद को शामिल,
बढते जाना,
गढते जाना,
हर नींद ख़्वाब चढते जाना,
फिर चाहे अनथक पैरों पर
धरती के जो इल्ज़ाम गिरें,
तुम हँसना!

हमने तुममें साँसें फूँकी?
ना!
तुमने हममें साँसें फूँकी,
तुमने हममें आसें फूँकी,
खुशियों में जीवन आ उतरा,
घर में एक आँगन आ उतरा,
हम ऋणी तुम्हारे हैं बेटी,
तुम खुद हमसे उऋण रहना,
और चाहे जितनी भी शर्त्तें
तुमपर अपनों के नाम गिरें,
तुम हँसना!

- Vishwa Deepak Lyricist

Tuesday, February 14, 2017

राष्ट्रद्रोह


राष्ट्रद्रोह का आरोपण!
.
नाखून तक न कटाकर शहीद कहलाने वालों का
'तुरूप का इक्का',
रेत में सर डाले शुतुरमुर्ग के लिेए रामबाण सुरक्षा-कवच,
बवासीर-वादियों का 'लवण-भास्कर चूर्ण'...
.
राष्ट्रद्रोह का हर सुबह उच्चारण
जगाता है एक नई स्फूर्ति,
पल में करता है छू
गूढ से गुह्यतम हर-एक गुप्त रोग;
जागृत करता है कुंडलिनी
जिह्वा के इर्द-गिर्द...
.
.
राष्ट्रद्रोह के पैमानें
भोले हैं,
मुहरें
हैं सुलभ,
चश्में
सुसंस्कृत!
.
.
मैं जीवित हूँ
जीजिविषा के साथ
और इसीलिए
तुम्हारी लेखनी आतुर है
डुबोने के लिए
इसे
अपराध की किसी-न-किसी श्रेणी में......

- Vishwa Deepak Lyricist