पिछले लम्हे की तरह बीत हीं जाओ तुम...
मालूम है कि धूप थी,
पर वह माज़ी की बात है..
मालूम है कि तुम अब भी पड़ी हो मेरे सीने में,
मगर चौंकती नहीं हर साँस के साथ,
बस चुभती हो ज़रा-सा..
मालूम है कि तुम्हें खो दिया है मैंने..
नहीं....
मुझे मालूम है तुम रख न पाई मुझे संजोकर
और अब
दोनों खीसे खाली हैं...
मालूम है कि जो हुआ..बुरा हुआ,
मगर एक पहचान काफी है हज़ार अच्छी सुबहों के लिए..
इसलिए
यह न कहूँगा कि अजनबी बन जाओ तुम..
बस
पिछले लम्हे की तरह बीत जाओ तुम
ताकि
सुकून मिले तुम्हें भी.....
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
बस
पिछले लम्हे की तरह बीत जाओ तुम
ताकि
सुकून मिले तुम्हें भी....
खूबसूरती से मन की व्यथा लिखी है ।
very nice one... really liked it!!!
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