इतिहास ताकता है खिड़की से
और देखता है सप्तर्षि,
कुछ सोचता है
फिर कर देता है घोषणा कि
"आसमान सात राजाओं से संचालित था"...
रात के तीसरे पहर में जब खुलती है उसकी नींद
तो भाग कर जाता है वह
दूसरी खिड़की पर
और पाता है एक पुच्छल तारा सरकता हुआ,
वह निकालता है बही
और इस बार लिखता है कि
"काले आसमान पर लाल रोशनी लिए उतरा था एक क्रांतिकारी"...
सुबह
दरवाजे के नीचे से
इतिहास को मुहैया कराई जाती है
एक थाली
जिसमें होती हैं रोटियाँ एक-दो विचारधाराओं की
और थोड़ी पनीली दाल जिसमें तैरता होता है सांप्रदायिकता का पीलापन...
इतिहास यह सब निगल कर अघा जाता है
और सुना देता है अपने हाकिमों को... सारा आँखों देखा हाल..
हाकिम खुशी-खुशी करार देते हैं कि
"पिछली रात जो कि अंधी और बहुराजक थी,
उसे ’फलां’ ने अराजक होने से बचाया".....
इतिहास की कालकोठरी की दूसरी तरफ की दीवार
जिधर न खिड़की है, न कोई झरोखा,
मौन रहकर घूरती है बस..
उसे याद है कि
पिछली शब "पूरनमासी" ने चाँदनी से भिंगो दिया था उसे...
इतिहास तैयारी में है अगली रात के लिए
और दीवार जानती है कि "चाँद फिर न दिखेगा इसे"...
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महीनों बाद
इतिहास को अगवा कर ले गए "दूसरी" सोच वाले..
अब वह "अमावस" की रातों में निहारता है "नियोन लाईट्स"
और लिखता है कि "हज़ार चाँद हैं आसमान में"...
- Vishwa Deepak Lyricist
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